आजकल के अधिकतर बिमारियों का कारण है – इंफ़्लेमेशन। यह इंफ़्लेमेशन यदि गट में हो तो ब्लोटिंग या गैस होगी, जोड़ों में हो तो दर्द व स्टिफ़्नेस होगा, स्किन में हो तो एक्ने व रैशेस होंगे, हार्ट में हो तो उच्च-रक्तचाप, ब्रेन में हो तो मेमोरी-लॉस व ब्रेन फ़ॉग, लंग में हो तो अस्थमा, इम्यून सिस्टम में हो तो बार-बार सर्दी-जुकाम व थकान होगी। और यदि क्रोनिक इंफ़्लेमेशन हो तो आप बिमारियों और दवाइयों के चंगुल में फँस जाएँगे।
जानिए इंफ़्लेमेशन के बारे में विस्तार से इस ब्लॉग में – इंफ़्लेमेशन के प्रकार, लक्षण, कारण, उससे बचने के उपाय। और साथ ही जानिए टॉप-5 एंटी-इंफ़्लेमेट्री हर्ब्स के बारे में।
आख़िर क्या है ये इंफ़्लेमेशन?
हमारा शरीर कई बाहरी और आंतरिक फ़ैक्टर्स का सामना करता है, जिसमें संक्रमण, चोट, विषाणु आदि शामिल होते हैं। इनसे बचाव के लिए हमारे शरीर का इम्यूनिटी सिस्टम सक्रिय हो जाता है और इसे प्रतिक्रिया देने के लिए जो प्रक्रिया होती है, उसे “इंफ़्लेमेशन” कहा जाता है।
इंफ़्लेमेशन शब्द असल में लैटिन शब्द “इन्फ्लैमो” से लिया गया है, जिसका अर्थ है “मैं जलाता हूं, मैं प्रज्वलित करता हूं,”। जब हमारे शरीर का कोई हिस्सा इरिटेट हो जाता है या क्षतिग्रस्त हो जाता है, तो हमारा शरीर उसे आगे की चोट से बचाने और बॉडी के टिश्यू फ़ंक्शन को बहाल करने के लिए प्रतिक्रिया देता है जो इंफ़्लेमेशन के रूप में होता है।
इंफ़्लेमेशन से स्वास्थ्य लाभ होता है। उदाहरण के लिए – यदि आपका घुटना टूटा हुआ है और उस क्षेत्र के आसपास के टिस्युज को अतिरिक्त सुरक्षा और देखभाल की आवश्यकता है। कुछ अन्य मामलों में, यही इंफ़्लेमेशन बॉडी के अंदर और भी इंफ़्लेमेशन पैदा कर सकता है और आपके बॉडी-फ़ंक्शन में बाधा उत्पन्न कर सकता है।
इंफ़्लेमेशन एक स्वाभाविक प्रक्रिया है और ये हमारे शारीर के डिफ़ेन्स सिस्टम का भी हिस्सा है। लेकिन जब यह इंफ़्लेमेशन लंबी अवधि तक रहती है या शरीर के अंगों में अत्यधिक बढ़ जाती है, तो यह स्वास्थ्य के लिए हानिकारक बन सकती है। इस ब्लॉग में, हम यह समझेंगे कि इंफ़्लेमेशन हमारे स्वास्थ्य के लिए कैसे खतरनाक हो सकती है और इससे कैसे बचा जा सकता है।
मानव जाति को ज्ञात लगभग सभी बीमारियों में एक चीज कॉमन है, और वह है – इंफ़्लेमेशन। यह मानव शरीर की प्रथम प्रतिक्रिया है जो संकेत देती है कि बॉडी में कुछ गड़बड़ हो रही है।
अब चाहे वह इंफ़्लेमेशन आपके व्यायाम से प्रेरित तनाव के कारण हो, किसी चोट की वजह से हो, या आपके द्वारा ग्रहण किए गए किसी विशिष्ट आहार से हो जो आपके पाचन तंत्र के लिए फायदेमंद नहीं है, या फिर किसी अज्ञात, हानिकारक पैथोजेन की वजह से हो – यह प्रथम संकेत के रूप में दिखाई देता है। इंफ़्लेमेशन का मुख्य उद्देश्य शरीर को चोट, संक्रमण या किसी बाहरी आक्रमण से बचाना होता है।
इंफ़्लेमेशन के प्रकार
इंफ़्लेमेशन मुख्यतः दो प्रकार के होते हैं – एक्यूट और क्रोनिक। एक्यूट या अल्पकालिक इंफ़्लेमेशन आमतौर पर कुछ दिनों में ठीक हो जाती है और यह हमारे शरीर को ठीक करने में सहायक होती है। परंतु जब यह इंफ़्लेमेशन लंबे समय तक बनी रहती है, तो इसे ‘दीर्घकालिक इंफ़्लेमेशन’ या ‘क्रोनिक इंफ़्लेमेशन’ कहा जाता है।
चोट, आघात या संक्रमण के तुरंत बाद एक्यूट इंफ़्लेमेशन होती है और यह प्रभावित क्षेत्र के आसपास लालिमा, सूजन, गर्मी, बुखार और दर्द के रूप में दिखाई देती है। यह आपके शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली का संकेत है जो शरीर को नुकसान से बचाने के लिए बड़ी संख्या में श्वेत रक्त कोशिकाओं को जारी करके किसी हमले का जवाब देता है। ज्यादातर मामलों में, तीव्र सूजन केवल अल्पकालिक होती है और ठीक से इलाज किए जाने पर चली जाती है।

क्रोनिक इंफ़्लेमेशन समय के साथ विकसित होती है, और यह आपकी इम्यून सिस्टम को लगातार सतर्क रहने, श्वेत रक्त कोशिकाओं को रिलीज़ करने और अदृश्य रूप से दुश्मन से लड़ने की लगातार कोशिश की वजह से से बनती है। यह इंफ़्लेमेशन का वह प्रकार है जिसके बारे में हमें चिंता करनी चाहिए क्योंकि क्रोनिक इंफ़्लेमेशन से शरीर के टिश्यू और अंगों को नुकसान पहुंच सकता है और यह आपके लिए कई गंभीर बीमारियों का कारण बन सकती है। इससे हमें डायबीटीज़, कैंसर, ऑटोइम्यून बीमारी, संधिशोथ, अल्जाइमर जैसे तमाम गंभीर बीमारियों के विकसित होने का खतरा रहता है।
कैसे पता करें कि आपको क्रोनिक इंफ़्लेमेशन है?
कुछ सबसे सामान्य लक्षणों का अनुभव होने से पहले आपको पता नहीं चलेगा कि आपकी बॉडी में क्रोनिक इंफ़्लेमेशन है। ये लक्षण आपके लिए एक इशारा हो सकते हैं जिन्हें आपको बिल्कुल नज़रंदाज़ नहीं करना चाहिए। ऐसे कुछ लक्षण हैं –
✅ बेवजह वजन बढ़ना
✅ बॉडी में या चेहरे पर वॉटर रिटेंशन होना
✅ बेवजह थकान महसूस होना
✅ ब्रेन फ़ॉग
✅ सुस्ती
✅ नींद संबंधी विकार
✅ पुराने दर्द
✅ गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल समस्याएं और संकट
✅ अवसाद, चिंता, चिड़चिड़ापन, या मूड से संबंधित अन्य विकार
✅ हृदय गति और रक्त शर्करा का स्तर बढ़ना
✅ उच्च कोर्टिसोल स्तर
हालांकि ऐसे कोई विशिष्ट परीक्षण नहीं हैं जो क्रोनिक इंफ़्लेमेशन का निदान करे। कुछ ब्लड-मार्कर्स हैं हमारे बॉडी में हो रहे स्ट्रॉंग इम्यूनिटी रीऐक्शन का संकेत देते हैं। सी-रिएक्टिव प्रोटीन (सीआरपी) उनमें से एक है, इसलिए जब भी ये मार्कर ऊंचे होते हैं, तो यह किसी संक्रमण या शरीर को नुकसान पहुंचाने वाले विकार के लिए एक स्ट्रॉंग इंफ़्लेमेटरी रीऐक्शन का संकेत है।
क्रोनिक इंफ़्लेमेशन रातोरात नहीं होती। यह एक धीमी और क्रमिक प्रक्रिया है जो विभिन्न कारकों का संयोजन है
क्रोनिक इंफ़्लेमेशन के कारण
क्रोनिक इंफ़्लेमेशन के कई कारण हो सकते हैं, जिनमें प्रमुख हैं:
1. अनुचित आहार: मुख्य रूप से अल्ट्रा-प्रोसेस्ड, अधिक फ़ैट, शुगर वाले आहार से इंफ़्लेमेशन को बढ़ावा मिल सकता है।
2. शारीरिक निष्क्रियता: नियमित रूप से व्यायाम न करने या दैनिक गतिविधि की कमी से इंफ़्लेमेशन की संभावना बढ़ जाती है।
3. नींद की खराब गुणवत्ता और लंबे समय तक नींद की कमी
4. तनाव और चिंता: मानसिक तनाव ख़ासकर दीर्घकालिक चिंता भी इंफ़्लेमेशन का कारण बन सकता है क्योंकि यह हार्मोनल असंतुलन का कारण बनता है।
5. धूम्रपान और अल्कोहल का सेवन: शराब, निकोटीन और नशीली दवाओं का दुरुपयोग जैसी आदतें शरीर में टॉक्सिक का निर्माण करती हैं जो इंफ़्लेमेशन का कारण बन सकते हैं।
6. वायरल या बैक्टीरियल संक्रमण: संक्रमण के कारण इम्यूनिटी सिस्टम अधिक सक्रिय हो जाती है और इसके लंबे समय तक सक्रिय रहने की वजह से क्रोनिक इंफ़्लेमेशन हो सकता है।

इंफ़्लेमेशन से जुड़ी स्वास्थ्य समस्याएँ
1. हृदय रोग : क्रोनिक इंफ़्लेमेशन आपके धमनियों को संकुचित कर सकती है, जिससे हृदय रोग और उच्च रक्तचाप का खतरा बढ़ जाता है। शरीर में इंफ़्लेमेशन बढ़ने से रक्त वाहिकाएं कठोर हो जाती हैं और यह दिल का दौरा पड़ने की संभावना को बढ़ा सकता है।
2. डाइबीटीज़ : इंफ़्लेमेशन के कारण इंसुलिन का प्रभाव कम हो जाता है जिससे मधुमेह (टाइप-2) का खतरा बढ़ सकता है। शरीर में उच्च शर्करा का स्तर इंफ़्लेमेशन की प्रक्रिया को और तेज करता है और धीरे-धीरे यह एक दुष्चक्र में बदल जाता है।
3. अस्थमा : फेफड़ों में इंफ़्लेमेशन का कारण अस्थमा हो सकता है। इससे सांस की नलिकाएं सिकुड़ने लगती हैं, जिससे सांस लेने में कठिनाई होती है।
4. गठिया या आर्थ्राइटिस : गठिया का प्रमुख कारण जोड़ों में इंफ़्लेमेशन है। गठिया जैसे ऑस्टियोआर्थराइटिस और रूमेटोइड आर्थराइटिस इसी प्रकार की इंफ़्लेमेशन के कारण होते हैं, जो जोड़ों में दर्द और अकड़न का कारण बनते हैं।
5. कैंसर : लंबे समय तक इंफ़्लेमेशन बने रहने से कोशिकाओं में अनियमित वृद्धि हो सकती है, जो कैंसर जैसी बीमारियों का कारण बन सकती है। इंफ़्लेमेशन के दौरान कोशिकाएं तेजी से विभाजित होती हैं और इससे ट्यूमर के बनने की संभावना बढ़ जाती है।
6. मानसिक स्वास्थ्य पर असर : लगातार इंफ़्लेमेशन का असर दिमाग पर भी पड़ता है, जिससे मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं जैसे डिप्रेशन, एंजायटी आदि उत्पन्न हो सकती हैं। शोध से पता चला है कि इंफ़्लेमेशन का मस्तिष्क की कार्यप्रणाली पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
इंफ़्लेमेशन से बचाव के उपाय
1. संतुलित आहार : स्वस्थ आहार इंफ़्लेमेशन को नियंत्रित करने में सहायक होता है। हरी सब्जियां, फल, नट्स और फाइबर से भरपूर खाद्य पदार्थ आपके बॉडी में इंफ़्लेमेशन को कम करते हैं। प्रोसेस्ड फूड, शुगर और ट्रांस फैट वाले खाद्य पदार्थों का सेवन कम करना चाहिए।
2. नियमित व्यायाम : व्यायाम करने से शरीर में इंफ़्लेमेशन पैदा करने वाले कारकों में कमी आती है। योग, ध्यान और नियमित रूप से चलना-फिरना इंफ़्लेमेशन को नियंत्रित करने में सहायक है।
3. तनाव प्रबंधन : मानसिक तनाव से इंफ़्लेमेशन बढ़ती है। ध्यान, मेडिटेशन और सांसों की एक्सरसाइज तनाव को कम कर सकती हैं और सूजन को नियंत्रित करने में मदद कर सकती हैं।
4. धूम्रपान, शराब, तंबाकू से बचें : ये आदतें इंफ़्लेमेशन के प्रमुख कारक हैं। सिगरेट का धुआं इंफ़्लेमेशन को नियंत्रित करता है और क्रोनिक इंफ़्लेमेशन को बढ़ावा देता है। निकोटीन और इंफ़्लेमेशन के बीच एक गहरा संबंध है क्योंकि निकोटीन आपके इम्यूनिटी सेल्स को हाइपर ऐक्टिव करता है जिन्हें न्यूट्रोफिल एक्स्ट्रासेलुलर ट्रैप कहा जाता है। इन नेट के लगातार संपर्क में रहने से क्रोनिक इंफ़्लेमेशन का ख़तरा बढ़ जाता है और टिश्यूज को नुकसान पहुँचता है। इसलिए इनका सेवन ना करें।
5. पर्याप्त नींद
नींद और इंफ़्लेमेशन के बीच गहरा संबंध है। पर्याप्त नींद न मिलने पर शरीर में इंफ़्लेमेशन पैदा करने वाले प्रोटीन का स्तर बढ़ जाता है, जिससे इंफ़्लेमेशन और विभिन्न स्वास्थ्य समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं। नींद की कमी से इम्यून सिस्टम पर भी असर पड़ता है, जिससे शरीर की इंफ़्लेमेशन को नियंत्रित करने की क्षमता कम होती है। अच्छी नींद इंफ़्लेमेशन को कम करने में सहायक है।
6. एंटीऑक्सीडेंट का सेवन : एंटीऑक्सिडेंट्स हमारे बॉडी में इंफ़्लेमेशन को कम करने में मदद करते हैं क्योंकि वे फ्री रेडिकल्स को बेअसर कर देते हैं, जो कोशिकाओं को नुकसान पहुंचाकर इंफ़्लेमेशन बढ़ाते हैं। एंटीऑक्सिडेंट ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस को कम करके कोशिकाओं को सुरक्षा देते हैं, जिससे क्रोनिक इंफ़्लेमेशन रोका जा सकता है।
7. एंटी-इंफ़्लेमेट्री हर्ब्स व सप्पलेमेंट का सेवन : एंटी-इंफ्लेमेटरी हर्ब्स व ख़ास सप्लेमेंट्स इंफ़्लेमेशन को कम करने में मदद करती हैं क्योंकि इनमें ऐसे प्राकृतिक तत्व होते हैं जो इंफ़्लेमेशन पैदा करने वाले एंजाइम और रसायनों को नियंत्रित करते हैं।
आइए इस ब्लॉग में हम जानते हैं 5 ऐसे ही ज़बरदस्त हर्ब्स के बारे में और साथ ही जानेंगे उन्हें लेने का सबसे आसान और किफ़ायती तरीक़ा।
5 टॉप एंटी-इंफ़्लेमेट्री हर्ब्स
यदि आप शरीर में क्रोनिक इंफ़्लेमेशन के ख़तरनाक प्रभावों से बचना चाहते हैं, तो इन 5 हर्ब्स पर ध्यान दें, जिनके बारे में वैज्ञानिक अध्ययनों से पता चला है कि इनमें इंफ़्लेशन से लड़ने की अद्भुत क्षमता होती है।
1. करक्यूमिन
करक्यूमिन हल्दी में पाया जाने वाला एक शक्तिशाली इंग्रीडीयंट है, जो हमारे बॉडी को क्रोनिक इंफ़्लेमेशन से बचाता है। यह सेप्सिस के मामलों में पाए जाने वाले सिस्टेमिक इंफ़्लेमेशन के लिए जिम्मेदार ट्यूमर नेक्रोसिस कारकों और इंटरल्यूकिन के उत्पादन को भी रोकने में सक्षम है।
करक्यूमिन के इतने पावरफुल एंटी-इंफ़्लेमेट्री होने का कारण है यह हमारे बॉडी में साइटोकाइन, एंजाइम और फ्री-रेडिकल्स जैसे ‘इंफ़्लेमेशन कारकों’ को रोकता है। कर्क्यूमिन एंटीऑक्सीडेंट और एंटी-इंफ्लेमेटरी गुणों से भरपूर होता है, जो कोशिकाओं को नुकसान से बचाकर इंफ़्लेमेशन कंट्रोल करता है।
हल्दी में करक्यूमिन की मात्रा काफ़ी कम होती है और ज़्यादा हल्दी का सेवन ज़रा मुश्किल लगता है। इसीलिए गोयंग का करक्यूमिन कैप्स्युल आपके लिए एक बेहतरीन विकल्प है जिसे लेना काफ़ी सुविधाजनक है और वो किफ़ायती भी है। इसके अलावा गोयंग का क्योरक्यूमाइन ड्रॉप्स भी करक्यूमिन लेने का एक आसान तरीक़ा है।
2. नोनी कॉन्सेंट्रेट
नोनी एक फल है जो अपने औषधीय गुणों के लिए जाना जाता है। इसमें एंटीऑक्सीडेंट, एंटी-इंफ्लेमेटरी और इम्यूनोमॉड्यूलेटरी गुण होते हैं, जो इंफ़्लेमेशन को कम करने में सहायक होते हैं। नोनी में पाए जाने वाले कम्पाउंड जैसे स्कोपोलिटिन और डैम्नाकैंथाल शरीर में सूजन पैदा करने वाले एंजाइम्स को रोकते हैं, जिससे इंफ़्लेमेशन कम होता है। इसके अलावा, नोनी कोशिकाओं को ऑक्सीडेटिव-स्ट्रेस से भी बचाता है, जिससे इंफ़्लेमेशन नियंत्रण में रहता है। यह शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को भी मजबूत करता है, जो इंफ़्लेमेशन के खिलाफ रक्षा में मददगार होता है। नोनी के नियमित सेवन से इंफ़्लेमेशन से जुड़ी सभी समस्याओं में ज़बरदस्त फ़ायदा मिलता है।
नैचुरल तरीक़े से इंफ़्लेमेशन कम करने के लिए नोनी एक वरदान है। गोयंग का प्योर नोनी कॉन्सेंट्रेट आपके लिए एक अच्छा विकल्प हो सकता है।
3. ब्लैक-सीड
ब्लैक-सीड को कलौंजी के नाम से भी जाना जाता है। इसमें पाए जाने वाले एक्टिव कम्पाउंड – जैसे थाइमोक्विनोन, इंफ़्लेमेशन को कम करने में ज़बरदस्त काम करते हैं। इसका कारण है कि ब्लैक-सीड हमारे बॉडी में हो रहे इंफ़्लेमेशन के मेकेनिज्म के जड़ में जाके काम करता है।
थाइमोक्विनोन एक शक्तिशाली एंटीऑक्सीडेंट और एंटी-इंफ्लेमेट्री एजेंट है जो हमारे शरीर में, इंफ़्लेमेशन बढ़ाने वाले तत्वों, जैसे प्रो-इंफ्लेमेटरी एंजाइम और साइटोकाइन्स को कम करता है।
ब्लैक-सीड हमारे कोशिकाओं को ऑक्सीडेटिव तनाव से भी बचाता है, जिससे सूजन और सेल डैमेज का खतरा घटता है। ब्लैक-सीड में मौजूद अन्य पोषक तत्व भी इम्यून सिस्टम को मजबूत बनाते हैं, जिससे शरीर को इंफ़्लेमेशन के खिलाफ लड़ने में मदद मिलती है। इसके नियमित सेवन से जोड़ों के दर्द, गठिया, डाइबीटीज़ और इंफ़्लेमेशन संबंधी तमाम समस्याओं में राहत मिलता है।
ब्लैकसीड को प्योर सॉफ़्टजेल फ़ॉर्म में आसानी से लिया जा सकता है – गोयंग ब्लैकसीड सॉफ़्टजेल कैप्स्युल के साथ।
4. लिक्विड क्लोरोफ़िल
लिक्विड क्लोरोफिल में प्रचुर मात्रा में एंटीऑक्सीडेंट और एंटी-इंफ्लेमेटरी गुण होते हैं, जो शरीर में इंफ़्लेमेशन को कम करने में मदद करते हैं। यह ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस को कम करके कोशिकाओं की रक्षा करता है और फ्री-रेडिकल्स को नियंत्रित करता है, जो हमारे बॉडी में इंफ़्लेमेशन के कारण बनते हैं।
क्लोरोफिल में पाए जाने वाले कम्पाउंड जैसे फाइटोन्यूट्रिएंट्स और मैग्नीशियम शरीर में इंफ़्लेमेशन बढ़ाने वाले एंजाइम को कम करने में सहायक होते हैं। इसके अलावा, क्लोरोफिल शरीर के pH बैलेंस को भी बनाए रखता है और बॉडी डिटॉक्सीफिकेशन में मदद करता है, जिससे शरीर में टॉक्सिक की मात्रा घटती है – और इंफ़्लेमेशन नियंत्रण में रहता है।
और आप इस लिक्विड क्लोरोफिल को प्रतिदिन बड़े आसानी से अपने पेयजल में मिला कर ले सकते हैं – गोयंग कलर-ओ-फ़िल ड्रॉप्स के साथ।
5. लहसुन
लहसुन हमारे भारतीय रसोई में पाया जाने वाला एक सबसे प्रचलित हर्ब है जिसमें औषधीय गुणों का भंडार है। लहसुन में प्राकृतिक एंटी-इंफ्लेमेटरी और एंटीऑक्सीडेंट गुण होते हैं, जो शरीर में इंफ़्लेमेशन को कम करने में सहायक हैं। इसमें पाये जाने वाले प्रमुख यौगिक का नाम है – ऐलिसिन जो इंफ़्लेमेशन बढ़ाने वाले एंजाइमों और साइटोकाइन्स को नियंत्रित करता है, जिससे इंफ़्लेमेशन में नैचुरल तरीक़े से कमी आती है।
लहसुन में भर के सल्फर-कम्पाउंड भी होते हैं, जो हमारे इम्यून सिस्टम को मजबूत करते हैं और शरीर की रोग-प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाते हैं। यह ऑक्सीडेटिव-स्ट्रेस को कम कर कोशिकाओं को नुकसान से बचाता है। नियमित रूप से लहसुन का सेवन आपके इंफ़्लेमेशन संबंधी तमाम समस्याओं में राहत देता है और साथ ही आपके संपूर्ण स्वास्थ्य को भी लाभ पहुंचाता है। यही कारण है कि लहसुन को गठिया, डाइबीटीज़, हार्ट-हेल्थ इत्यादि में सदियों से इस्तेमाल किया जाता रहा है।
ज़्यादा मात्रा में लहसुन का सेवन ज़रा मुश्किल है और आजकल तो ये काफ़ी महँगा भी है। इस लहसुन के एलिसिन को लेने का एक बेहतरीन और किफ़ायती तरीक़ा है – गोयंग का गारलाइट सॉफ़्टजेल कैप्स्युल।
अधिकांश लोग क्रोनिक इंफ़्लेमेशन के संकेतों पर ध्यान नहीं देते हैं और परिणामस्वरूप आगे जा कर बिमारियों और दवाइयों के चंगुल में फँस जाते हैं। तो इससे पहले कि बहुत देर हो जाए आप अपने बॉडी के इंफ़्लेमेशन पर ध्यान दें, मामलों को अपने हाथों में लें और इंफ़्लेमेशन को क्रोनिक होने से रोकें। जानकार बनें और अपना बेहतर ख़्याल रखें।
Written by : Dr Rajesh Singh